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नविता यादव

Others

0.6  

नविता यादव

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मेरी सोच,मेरी जिंदगी

मेरी सोच,मेरी जिंदगी

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दुख हुआ , तकलीफ़ हुई, ख़ुशी भी हुई,

पर जाने क्यों दिल में कभी ईर्ष्या ना हुई।


बचपन से अब तक का याद है सारा फ़साना,

इंद्रधनुषीय रंगो की भांति

मेरे अपने जीवन का इंद्रधनुष है निकाला।


मेरे संस्कार मेरे परिवार की देन हैं,

मेरी सोच मेरे माता - पिता की देन है,

मेरे माता - पिता के अंदर कभी मैने ऐसी प्रवृति न देखी

यहीं कारण है ,मेरे अंदर ये ईर्ष्या जन्म ही नहीं लेती।


मानव जीवन है ,कई प्रकार के लोग मिले,

कई से खुशी मिली ,कई से दुख भी मिले,

पर हर किसी से कुछ न कुछ सीखने को मिला,

ईर्ष्या करने से अच्छा मैने अपने आप को संवारना जरूरी समझा।


जो मन पाले "ईर्ष्या" ,वो हर पल उसमें खोए,

दूसरों से बदला लेने खातिर,खुद ही पहले मैला होय,

नहीं रखा कुछ "ईर्ष्या "भाव मन भीतर पालने में,

एक ही जन्म मिला है सबको ,

जी लो उसको अलग ही अंदाज में।



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