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मेरी...
मेरी सारी नज़्में
शालिनी मोहन
Others
2
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Originality :
2.0★
by 1 user
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Language :
2.0★
by 1 user
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Cover design :
2.0★
by 1 user
शालिनी मोहन
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मेरी सारी नज़्में
मेरी सारी नज़्में
बादल उभरे उभरे थे
बिजली भी कुछ ख़ामोश थी
उस दिन
बहती नदी के किनारे पर
एक लंबी धूप की चादर में
तुमने मेरी सारी नज़्में
छान छान के रख ली
अब मछलियाँ नहीं
आती किनारे
क्यों चुराई तुमने
मेरी सारी नज़्में
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