मेरी माँ
मेरी माँ
बेमिसाल, लाज़वाब है अनमोल मेरी माँ,
निस्वार्थ प्यार देती घोल-घोल मेरी माँ,
दो दिन जो बात न हो तो होती है परेशान,
बच्चों को अपनी जान बताती है मेरी माँ।
अपने लिए उसे कभी जीते नहीं देखा,
बच्चों का हित ही जिंदगी भर उसने बस देखा,
बच्चों के दुख में नैन बना लेती है सरिता,
दुख अपने सब खूबी से छिपाती है मेरी माँ।
बच्चे न खाएं भूख उसे भी नहीं लगती,
बच्चों की खुशी उसकी आँखों से है झलकती,
उज्ज्वल भविष्य बच्चों का ही उसका बस सपना,
बच्चों के लिए रब को मनाती है मेरी माँ।
उसको है क्या पसन्द ये वो जानती नहीं,
बच्चों से जुदा खुद को कभी मानती नहीं,
अपने लिए कंजूसी बहुत खर्च में करती,
बच्चों के लिए कोष लुटाती है मेरी माँ।
सब खुशियाँ अपनी बच्चों पर उसने न्यौछार दीं,
इच्छाएँ अपनी दफन कीं नींदें भी वार दीं,
दो बोल उससे प्यार के हम बोलते रहें,
इसके सिवा न और कुछ चाहती है मेरी माँ।