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मेरी कविता

मेरी कविता

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अभी तो शैशव काल में है

मेरी कविता

परिपक्व होने में 

ज़रा वक़्त लगेगा

बंदिशों में जीती है,

सहमी सी रहती है

जब हो जाऐगी जवान 

तब किसी नवयौवना सी 

इठलाऐगी, इतराऐगी

भरेगी जब उन्मुक्त उड़ान

तब और निखरेगी और सँवरेगी

रंग रूप खिलेगा

और चढ़ेगा उम्र का खुमार

तजुर्बों से मिलेगी सीख 

और आ जाऐगी थोड़ी संजीदगी

जानेगी इस जीवन को,

लड़ेगी हालात से,

समझेगी जज़्बात को,

पहचानेगी भले बुरे का भेद,

फिर कहेगी अपने विवेकानुसार

वो दिल की बात

फिर मेरी कविता भी 

बन जाऐगी सुंदर सी प्यारी सी

छैल छबीली सी एक नार

है न????

                             

अंजू मोटवानी 

 

 


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