मेरी जन्म भूमि
मेरी जन्म भूमि
मेरी जन्म भूमि,
तुझे शत शत प्रणाम,
आज भी तेरी याद,
भर देती दिल में उल्लास,
वो मंजर याद आता,
वो बचपन नहीं भूल पाता,
जब नहीं था कोई फ़िक्र,
दिनभर खाना पीना और खेलना,
बस यही था नियम।
एक खूबसूरत शहर था,
पहाड़ों से चारों और घिरा था,
सब एक दूसरे को जानते थे,
मौज-मस्ती से समा बांधते थे।
वो चीड़ की ठण्डी हवाएं,
बिना बुलाए बारिश का आ धमकना,
वो घर के पास निकलती हुई चौड़ी सड़क,
मेरा उस सड़क के साथ फूटपाथ पे बैठे रहना,
और दोस्तों से गप्पें हांकना।
सचमुच बहुत सही वक्त था,
वो छोड़ गया,
स्मृति में न भुलने वाले चिन्ह।
लेकिन अब वहां जा नहीं पाता,
बस यादों के सहारे ही जिया जाता।
