मेरी दृष्टि से तुम्हारी सृष्टि
मेरी दृष्टि से तुम्हारी सृष्टि
तुम पुरुष मैं स्त्री
सीता सी पवित्रता चाहते हो
किंतु राम ना तुम बन पाते हो ।
उर्मिला सा त्याग मांगते हो
किंतु लक्ष्मण सी भक्ति ना ला पाते हो।
चाहते हो स्वामी भक्ति में मन्दोदरी सी लीन रहूं,
पर पुनीता पे कुदृष्टि तुम ही तो डालते हो।
चाहते हो द्रौपदी बन वनवास चलूं
अपने वचनों से तुम्हे मुक्त करूं,
हर देविका, सुभद्रा , करेनुमती को स्वीकार करूं,
हर जयद्रथ को माफ करूं
पर धरमराज तुम ना बन पाते हो ।
हर परीक्षा मुझसे करवाते हो
हर प्रतिबंध मुझपे लगाते हो ।
मुझसे तो बहुत कुछ चाहते हो ,
पर मुझसे ना जाने क्यों जान नहीं पाते हो ।
रुक्मिणी सा तुला भरम करूं
सत्यभामा बन नरकासुर से लडूं ,
राधा बन प्रेम के लिए सारे बंधन तोड़ दूं ,
मीरा सी जोगन बन हर रिश्ता तोड़ दूं।
पर तुम क्या कृष्णा बन पाओगे ?
दुनिया के हर लांछन कंकड़ से मुझे बचाओगे ?
क्या मेरे हर गुण - अवगुण को हृदय से
क्या मेरे प्रेम के लिए स्यमंतक और इंद्र का परिजात लाओगे ?
मेनका और रम्भा तुम चाहते हो ,
फिर रावण और इंद्र की भूमिका क्यों निभाते हो ?
बनते अगर नलकुबेर से साथी
स्वर्ग की अप्सरा मुझमें ही मिल जाती।
महर्षि बन हर भावना संबंध त्यागते हो,
यूं तो मुझे सिर्फ यज्ञ की सामग्री सा मानते हो ।
मुझे श्राप दे अंधेरों में धकेल ,
कितनी
आसानी से ' गौतम ' संसार में रोशनी फैलाते हो ।
कैसे अपनी इचछानुसार मेरे कर्मो के निर्णायक बन जाते हो ?
क्या सचमुच इतनी आसानी से और कर्तव्यों के लिए मुझे भुला पाते हो ?
शिव्या बन चाहते हो हर त्याग में संगिनी रहूं ,
तुम्हारे ही वचन की पूर्ति के लिए स्वाभिमान भी त्याग दूं ।
हरिश्चंद्र सी सच्चाई ना ला पाते हो ।
मुझसे तो बहुत कुछ चाहते हो ,
पर मुझे समझ ना पाते हो ?
वनवास मुझे भेजना चाहते हो ,
राम राज्य ना बसा पाते हो ।
पुत्र ,मित्र ,राज धरम तो बखूबी निभाते हो ।
जीवनसाथी के किरदार निभाने के समय किन बेड़ियों में बंद जाते हो ?
अगर मै सती बन अग्नि स्नान कर लूं
जहां बचपन बिताया वहां के हर बंधन तोडलूं
पार्वती बन वर्षों तप करूं
त्रिनेत्र के प्रकोप से भी ना डरूं
तो क्या तुम भी शिव बन वर्षों तप करोगे ?
मेरी प्रतीक्षा में युगों तक सब्र करोगे ?
अर्धनारीश्वर बन क्या मुझे वैसा ही सम्मान दोगे ?
मेरे हर वाक्य वचन का क्या तुम मान करोगे ?
एक बार अपेक्षाएं छोड़
मुझे खुद का ही हिस्सा मान कर देखो,
मै भी सरस्वती बन संसार रचना की प्रेरणा बन जाऊंगी ।
विष्णु की लक्ष्मी बन जाऊंगी ।
कैलाश में तुम समा जाऊंगी ।
हर भूमिका हर कर्तव्य निभाऊंगी
तुम मर्यादा पुरूषोत्तम बानो
में भी हर अग्नि परीक्षा पार करके दिखाऊंगी ।।