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PRIYARANJAN DWIVEDI

Others

5.0  

PRIYARANJAN DWIVEDI

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मेरी बातें !

मेरी बातें !

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अपने कमरें की ज़र्द दीवारों से थककर,

मैं अक्सर चला जाता हूँ छत पर,

और एक टक देखता हूँ इन तारों की और

अक्सर खो जाता हूँ अपनी अतीत की गहराइयों में


याद है कैसे हम बचपन में

गर्मी की छुट्टियों में हम सारे कज़न

एक साथ छत पे सोते थे

और जब भी उपर आसमान को को देखते थे


तो कितने सवाल होते थे

और हम बहुत ही उत्सकुता से पूछते थे,

"इतने सारे तारे रात में कहां से आ जाते है,

और ये टिमटिमाते ही रहते है गिरते क्यों नहीं ?


क्या हो अगर ये पूरे तारे एक साथ ही गिर जाए

और तभी कोई तारा टूट जाता तो कोई चिल्ला के कहता

वो देखो टूटा हुआ तारा,

चलो विश मांगते हैं और सब बिना सोचे समझे

माँगने लग जाते थे

(पता नहीं उस समय वो विश पूरी होती थी या नहीं, आ

जकल की तो विश पूरी नहीं होती)


उस समय भी हज़ारों सवाल थे हमारे पास

जिनके जबाब शायद ही हममे से किसी के पास थे,

और आज भी जिंदगी में हज़ारों सवाल है

हमारे पास जिनके जबाब शायद मिले भी

और शायद कभी न मिलें।


लेकिन जो भी हो चांदनी रात में

इस विशाल आसमान में इन छोटे-छोटे तारों को

देखकर हमेशा लगता है कि, "जिंदगी बड़ी है, समस्याएं नहीं।"

"मुस्कुराता हूँ मैं की जिंदगी अभी और है,

सितारों के बाद भी ये जहां अभी और है।"


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