मेरे भैया-मेरे प्रेरक
मेरे भैया-मेरे प्रेरक
हमने भी तो अपने विचारों को ,शब्दों में बयां करने का लिया था फैसला,
इस के पीछे भैया के भरोसे की शक्ति थी, और उनका दिया गया हौसला,
भैया लिखते थे विचारों को रूप होता था, निबंध - कविताएं और कहानी,
पत्रिका में वे भैया के नाम के साथ छपती थीं, पढ़ी पत्रिका तभी मैंने जानी।
मैं बिना हिचकिचाए अपने मन में आए , प्रश्नों को पूछ लिया करता था,
भैया द्वारा जिज्ञासा का समाधान होगा ,सदा विश्वास से ही मन भरता था,
भैया के पास थीं ढेरों सारी किताबें ,पढ़ता था उनमें कहानी और कविताएं,
जिन्होंने इन कहानियों और कविताओं को ,लिखा है उनके बारे में हमें बताएं।
इनमें से भैया के कुछ मित्रों के भी लेख होते थे, जिनको मैं भी जानता था,
किसी के भी प्रेरक-सार्थक विचार छप सकते हैं, मैं अब यह भी मानता था,
मन में उठती थीं हिलोरें मैं भी कुछ लिखूॅ॑ ऐसा,कि मेरा नाम भी छप जाए,
पत्रिका-अखबार-स्कूल की किताबें पढ़ता, जिससे शब्द -विचार नये से आएं।
मन में जो विचार आते थे उनको, लिखकर भैया को मैं दिखाता था,
शब्दों के लिए प्यारी शाबासी, शब्दों के बेहतर विकल्प भी पाता था,
हर क्षेत्र में आगे बढ़ाने के लिए ,अदृश्य रूप में भैया उत्साह बढ़ाते हैं,
यह उनका है आशीष-हौसला जिससे,हम लिखने की हिम्मत जुटाते हैं!
