मेरे अंगने में
मेरे अंगने में
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जाने कहां गई वो सुबह
वो चिड़ियों से होता सवेरा
वो जामुन की दातुन और नीम का झूला
वो चूल्हे की रोटी घी मलकर खाना
भरी दोपहर में कंची खेलना
खेतों में बैलों की पूंछ ऐंठना
बैलगाड़ी ही हमारी राजधानी थी
हमारी गाय भैंस क्या कम रानी थी
इनको खोकर हमने जाना
जितना अमूल्य था इनका रहना
अब तो बस यादों में कैद है
फिर नहीं आने वापस मेरे कहने से
सब खो गए ये सपने में
मेरे अंगने में
