मेरा रोग
मेरा रोग
मन करता है मैं लिखता जाऊँ,लोगों को कोई गीत सुनाऊँ,
मधुर रागनी के कंठों से ,सुर सरगम का हार बनाऊँ !!
कभी प्रणय का गीत लिखूँ ,सौंदर्य का गुणगान करूँ ,
नख -शिख वर्णन करकरके ,प्रेमों का इजहार करूँ !!
कभी प्रकृति के वर्णन को ,अपने गीतों में उसको ढालूँ ,
उसके सौन्दर्य बिरासत को ,अपने हृदय में उसे बसालूँ !!
वीरों के बलिदानों को हम ,कैसे उन्हें भुला सकते हैं ,
तब उनकी गाथा को हम ,जीवित ही कर सकते हैं !!
सब रस है जीवन में सुंदर ,हास्य व्यंग भी लिखते हैं ,
पर व्यंगों की बातों में हम ,स्वयं नायक हम बन जाते हैं !!
मैं लिखता हूँ सब दिन यूंही,यह रोग बड़ा पुराना है ,
मैं गाता हूँ अपनी धुन पर ,सबको यह गीत सुनाना है !!