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Lakshman Jha

Others

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Lakshman Jha

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मेरा रोग

मेरा रोग

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मन करता है मैं लिखता जाऊँ,लोगों को कोई गीत सुनाऊँ,

मधुर रागनी के कंठों से ,सुर सरगम का हार बनाऊँ !!

कभी प्रणय का गीत लिखूँ ,सौंदर्य का गुणगान करूँ ,

नख -शिख वर्णन करकरके ,प्रेमों का इजहार करूँ !!

कभी प्रकृति के वर्णन को ,अपने गीतों में उसको ढालूँ ,

उसके सौन्दर्य बिरासत को ,अपने हृदय में उसे बसालूँ !!

वीरों के बलिदानों को हम ,कैसे उन्हें भुला सकते हैं ,

तब उनकी गाथा को हम ,जीवित ही कर सकते हैं !!

सब रस है जीवन में सुंदर ,हास्य व्यंग भी लिखते हैं ,

पर व्यंगों की बातों में हम ,स्वयं नायक हम बन जाते हैं !!

मैं लिखता हूँ सब दिन यूंही,यह रोग बड़ा पुराना है ,

मैं गाता हूँ अपनी धुन पर ,सबको यह गीत सुनाना है !!


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