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Dr. Pankaj Srivastava

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मेरा बचपन और माँ-पापा

मेरा बचपन और माँ-पापा

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जीवन के 40 सावन गुजर चले, 

यादों के बादल उमड़ कर घुमड़ चले



वो विशालकाय घनघोर है जो

पाषाण काल का घोतक है।


वो सुघड़ स्वरूपी मदमाता सा,

बसंत ऋतू का उदघोषक है।


जननी, जनक उल्लेख बिना, 

प्रत्येक प्रयास अधूरा है। 


माँ की ममता और दुलार, 

ना जाने इसके कितने प्रकार।


पापा के जीवन का हर प्रयास

सर्वथा रहा हमारे आस- पास।


खुद थे, सुखों से दूर भले, 

पर बच्चे नितांत सुख में पले।


उनकी वरीयता माँ और बच्चे थे,

आदर्श, सरल और सच्चे थे।


ऐसे हैं हमारे जीवनदाता, 

वे ही हैं मेरे भाग्यविधाता।


मैं कृतज्ञ, मेरा संसार कृतज्ञ, 

जो उस जननी से उत्सर्ग हुए।


उस वटवृक्ष की छत्रछाया में, 

जीवन का हर पल संरक्षित हो।


ना रहे विरक्ति जीवन में 'पंकज'

उनका हर छण विषाद मुक्त रहे।


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