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संदीप सिंधवाल

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संदीप सिंधवाल

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मेरा बापू

मेरा बापू

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तेरे कंधों बैठ के, देख लिया जग सकल।

तुझमें ढूंढ़ता खुद को, मुझमें तेरी नकल।।


जो चाहा तूने दिया, झट रखा मेरा मन।

तुझे मैं न समझ पाया, कोन देता ये धन।।


तेरी उंगली पकड़ी जब, ना लगा कोई डर।

तेरी छाया में पला, छाया से सुखद घर।।


जहां से लड़ते देखा, न पड़ी मुझ पे घात।

सारी दुनिया बाद में, पहले मेरी बात।।


हर गलती पर दी सबक, ना हो अगली बार।

उसूल सिखाए जग के, नीति के दिए सार।।


अब वो बूढ़ा हो चला, न करता कोय आस।

सारी खुशियां इसमें कि, मै रहूं सदा पास।।


तेरी हर तकलीफ से, याद आता बचपन।

मेरी इक तकलीफ पे, समाधान थे छप्पन।।


तेरी लंबी उम्र की, 'संजू' करे फरियाद।

एक तेरे साये में, जीवन हो आबाद।।





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