मधुमालती के नीचे
मधुमालती के नीचे
तोड़ कर सारी सीमाएँ
फैली हैं चहूँ ओर लताएँ,
राहगीरों को ये पुकारें
फाँद कर अपनी दीवारें,
फूल-फूल लगता नगीना
भरा पराग से इनका सीना,
महके भीनी-भीनी खुशबू
सब पर ही करती ये जादू,
गुणों की होती यह खान
है मुश्किल करना बखान,
छूने में है बिल्कुल मलमल
टहनी भी होती है कोमल,
देख के इसकी छटा अलौकिक
हो जाता हर कोई आकर्षित,
झूमर सी यह लटकी रहती
हवाओं के हर रूप को सहती,
सावन के ये गीत है गाती
युगलों में यह प्रीत बढ़ाती,
भँवरे आकर करते गुन-गुन
रहते अपनी मगन में ही, धुन,
बरबस अपने पास बुलाती
ठंडक का एहसास कराती
आती जब सिन्दूरी शाम
रूकते प्रेमी हाथों को थाम,
इसकी हरियाली के तले
अक्सर उनका प्यार पले,
आओ अपना प्रेम भी सीचें
बैठें चलो मधुमालती के नीचे।