मौत
मौत
कुछ तो रही है बात तुममें,
कि तुमसे मिलकर लोग जीना ही छोड़ देते है,
जिक्र आते ही जुबां पर तुम्हारा,
सब ही तो एक खामोशी का कफन ओढ़ लेते है,
तुमसे नहीं अछूता कोई इस धरा पर,
हैं अनुभूति अनेक पर तुम सबसे खास हो,
मौत तुम एक एहसास हो।।
बहुत संजीदगी है तुम्हारी आहट में,
कि भले कोई जिये कितना भी,होके लापरवाह लाख ,
दिल के किसी कोने हो काबिज़ तुम,
ज्यों राख के ढेर में छुपी किसी,सुलगती चिंगारी की आग,
एक बस तुम नहीं झूँठी इस जमाने में,
डर के तुमसे , यहां हौं सब सद्कर्म वो अच्छाई हो,
मौत तुम एक सच्चाई हो।।
न्याय तुमसा तो कोई यहां नहीं करता,
कि न तुम्हें कोई रौब ,न रुतबा ही डरा सकता है,
फ़क़ीर हो या फिर बादशाह कोई,
यहां नहीं है कोई जो कि तुम को हरा सकता है,
तुम्हारे फैसले की कोई पैरवी ही नहीं,
यम के इस दण्डपाश की, तुम ही तो प्रबल शक्ति हो,
मौत तुम एक विरक्ति हो।।
नाम तुम्हारा ही सिहराने के लिए काफी है,
दिया घाव तुम्हारा बस, ये यूँही तो नहीं भरता,
शून्य सा आता है जो जीवन में,
लेप कोई भी हो पर पर दर्द दिल का न कोई हरता,
रिक्तता भी तो तुम्हारी ही एक निशानी है,
इस जीवन की शांत लहरों में ,अचानक से उठा चक्रवात हो,
मौत तुम एक निर्वात हो।।
