मौहब्बत
मौहब्बत
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वस्ले इंतजार भी क्या खूब रहा?
जिंदगी उस बात पर गुजरी,जो उसने कभी नहीं कहा।
दौरे मौहब्बत का अपना सुरूर था,
अल्फाजो पर नहीं, खामोशियों पर गुरूर था।
जजबातों का मुकम्मल एहतराम ,लहरो सा वाबस्ता,
नजरो मे मोहब्बत का खामोश दरिया जैसे रूकता।
आसमां का वो चांद आज भी , हमसे पूछता है,
क्या तू भी तारो के बीच,मेरी तरह तन्हा रहता है।
