Massum tha
Massum tha
मासूम था
बदनाम था
गलियों में फिरता था गुमनाम सा
मोहब्बत से अंजान था
पर मासूम था
बदनामी उसके सर पे अंजान सा
कुछ करता नहीं था फिर भी बदनाम था
कई रातों से बो सोया नहीं क्योंकि
वो ढूँढ रहा सहर अपना गुमनाम सा
नींदें है रातों को आती नहीं
उसकी मोहब्बत उसे बुलाती नहीं
आशिकी से बेखबर
जिसे वो चाहता वो उसे चाहती नहीं
जिन्दगी उसकी बेरुखी सी
अपने उसके साथ नहीं
पैसों के साथ होते अपने
पर पैसे उसके पास नहीं
ना जाने किस गली में हैं
ना जाने किस शहर में हैं
किस्मत उसकी ऐसी रूठी
ना जाने किस महल में हैं
वो मासूम था यही इसका गुनाह था
उसका होना किसी के लिए ज़हर हुआ
जिसने उसे समझा उसी के लिए वो गैर हुआ
मासूमियत से जीना चाहता था वो
पर मासूमियत ही उसी के लिए कहर हुआ
उसकी दुआएं खुदा कबूल ना करे
ऐसे खुदा था वहाँ
उसको रोते देख अपने उसे गले ना लगाएं
ऐसे अपने थे वहाँ
ख़ुदगर्ज़ी की इस दुनिया में
बो मासूम कहाँ से आया
खुदगरो की दुनिया में
बो मासूम कहाँ से आया
जिंदगी ने छीन लिया जो उसका अज़ीज़ था
खुदा को छोड़ किस्मत भी उसकी थी कहाँ
रातों को नींद उसको आती नहीं
यही सोच कर ज़िंदगी उसने जी कहा ज़िंदगी उसने जी कहा।
