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Pushpa Srivastava

Others

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Pushpa Srivastava

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मैं नदी जैसी

मैं नदी जैसी

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नदी की तरहा कलकल बहती

नीरव शांत मैं निरंतर रहती

पर मेरी खामोशी किसी ने

कभी समझी ही नहीं।


सब पर स्नेह मैं लुटाती

सब पर ख़ुशियाँ बरसाती

पर मेरी ख़ुशियाँ किसी ने

कभी देखी ही नहीं।


सब की पीड़ा मैं हरती

सब के दुख दूर करती

पर मेरी पीर किसी ने

कभी देखी ही नहीं।


चाहतें सबकी पूरा करती

ख़ुशियों से सबको हँसाती

पर मेरी चाहत किसी ने

कभी देखी ही नहीं।


किनारे से मैं ना मिल पाती

साथी के साथ को तरसती

पर मेरी तड़प किसी ने

कभी देखी ही नहीं।


सबकी बातें ध्यान से सुनती

सबको प्यार से मैं दुलारती

पर मेरी कहानी किसी ने

कभी सुनी ही नहीं।



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