मैं क्या कुछ नही …
मैं क्या कुछ नही …
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मैं …..तो बस अधूरा हूँ
अपने आप में भी …..
औरों की परिभाषा में भी
इस जिस्म को भी पूरा किया है
मन ने और ……..मस्तिष्क ने
वास है जिसमें ……
दोनो का साथ साथ …
प्रेम भी है ……..घृणा भी
कोई अच्छा करे
तो प्रेम करते हैं उसे
कोई ग़लत करे
तो घृणा हो जाती है
दोनो एक दूजे के विपरीत हैं
फिर भी एक साथ समीप है
जब दो का मेल है .. आत्मा
फिर मैं ……, नही … हम है
मेरा अस्तित्व …. पूरा होता है
मैं अकेला ……. हम से जहां।