मैं हो गई परायी
मैं हो गई परायी
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गोद तुम्हारी, शरीर तुम्हारा।
आँखें खुलने पर तुम्हें निहारा,
आंगन में भाई संग खेला,
माँ ये सब था कितना प्यारा।
उंगली पकड़कर तेरी मैं संभली,
डाँट भी लगती थी कितनी भली,
झगड़ा वो भैया का था झूठा,
अब जाकर ये समझी मैं पगली।
मंगवाती थी सब फैशन का,
कपड़े, जूते सब कुछ मन का,
रातरानी का पेड़ था जो लगाया,
अब भी है वहीं का वहीं वो महका।
शिकन भी तेरी मैं सह नहीं पायी,
दूर होके भी तेरी ही बेटी कहलायी,
मन में वो आंगन सजाए रखा था,
फिर भी क्यों मैं हो गई परायी ?
