मैं चली मैं चली
मैं चली मैं चली
कह दूं क्या मैं भी दिल की,
कह दूं या ना बोलूं कुछ भी,
यह दर्द मीठा सा है, थोड़ा तीखा सा है,
जल-थल-चल-चल,
चल-चल बहता चल,
खुश होती फूलों की डाली है, और मेरे मन को महकाती है,
पिरोली मैने माला छोटी कलियों की,
नीली सुनहरी ये चुनरी,
मिलके गोटे लगाएंगे रे,
काली कोयल बनी बैरी है, चुप चुप ही बैठी है,
मंदिर की घंटी बाजी, और धुन महकने लगी,
मैं तो दूर चली, मैं तो चलती चली,
पार वाले पर ले किनारे चली,
मीठी मीठी बातें, मीठी बातों में,
ये पल कुछ कह जाएगा,
पहली भोर में जब भंवरा बोलेगा,
और कहके गुज़र जाएगा,
सब फिर थम जाएंगे ये पत्ता ये बूटा,
भूल न जाना मुझे, सब पूछेंगे वरना
अब नही कुछ कहना सब भंग हो जाएगा वरना,
रे चुप चाप चली, मैं तो दूर चली,
रे कहती चली, मैं तो कहके चली
रे मैं गीत गाती चली, मैं तो राग पिरोती चली,
रे चली मैं चली मैं चली,
कहीं दूर चली।