STORYMIRROR

Vandana Singh

Others

3  

Vandana Singh

Others

मैं और तुम

मैं और तुम

1 min
536


मैं और तुम

तुम और मैं

शायद यही दूरियों की वजह है

कोई एक राग, एक सुर एक चाह

एक स्मृति, एक वजूद दिखता नहीं

दूर तक एक समंदर हो जैसे

निकल पाने की चेष्टा,

अन्दर खींच रही हो जैसे

फिर उफनते झाग जीवन की

कड़वाहट बयां करते

और बेअसर शब्द भावनाओं

से अधमरे

कहीं चादर ताने सो रहे हो


दिन का जैसे आभास ही ना हो

रोज उठ जाने की कल्पना करते

फिर अलसाई आँखों से अंधेरे

भविष्य निहारते

कोई चाह, कोई साथी न हो जैसे

फिर हूँ मैं और तुम

तुम और मैं


दो किनारों से, बेबस मुँह ताकते

किसी बेमेल मुसाफिरों से

फिर दया की खिड़की से झाँकते

मासूम बच्चों का बचपन निहारते

हँसी में ढूंढते अपनी आहों को

एकटक, जड़ हो गए हो जैसे


फिर अपने बुढ़ापे पर तरसते

नीरस निस्वाद फिर से

उन्ही रंगों को पाना चाहते हो जैसे

फिर से हूँ मैं और तुम

अनंत आकाश को निहारते।



Rate this content
Log in