मैं और मेरी चाय
मैं और मेरी चाय
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हर सुबह आँख खुलते ही तुम्हें गले लगाती हूँ,
ऐ मेरी चाय मैं तुम्हें कहां भूल पाती हूँ।
तुमसे दिन शुरू करने का मज़ा कुछ और है
चाय तुमसे मेरा इश्क मुझे कबूल है
तुमसे चेहरे पर मुस्कान आ जाती है
तभी तो तुम्हें छोड़कर नहीं रह पाती हूँ।
तेरे साथ कुछ पल बैठ जाती हूँ तो,
अपनी हर थकान भूल जाती हूँ।
अगर तेरे साथ मिल जाए कुछ यार
तो तू हो जाती है ज़ायकेदार,
कुछ किस्से, कुछ खट्टी-मीठी यादें
थोड़ी नोंक-झोंक, बहुत सारी बातें
तेरे पास बैठ अक्सर लौट आती है
तभी तो तू सभी को पहले याद आती है न।
एक कप चाय से कितने ही काम बन जाते हैं
चाय के बहाने सही लोग मिलने आते हैं न।
हर सुबह आँख खुलते ही तुम्हें गले लगाती हूं
ऐ चाय मैं तुम्हें कहां भूल पाती हूं।