माताएं
माताएं
चलें गर्व के साथ गीत हम उस संस्कृति के गाएं ।
जहाँ जन्मना एक, अजन्मा हैं अनेक माताएं ।।1।।
जन्मदायिनी एक, और जो बाकी हैं सौतेली ?
सौत चून की भी न ठीक होती है किसे बताएं ।।2।।
माँ वह भी हैं यहाँ, त्याग देतीं जो जन्मे शिशु को ।
एक मेनका, एक उर्वशी, कुन्ती-सी महिलाएं ।।3।।
जीवन दिया, स्नेह दे पाला, वही श्रेयसी सबसे ।
जो ममता का सिन्धु लुटाती, लेती रही बलाएं ।।4।।
मान लिया मेषों को माँ जब पहले सभ्य-पुरुष ने ।
दूध केश तन की बलि देकर देतीं मेष दुआएं ।।5।।
जबसे उनके वत्स हलों में मानव ने जोते हैं ।
माँ जितना सम्मान पा रही हैं भारत में गायें ।।6।।
जीवन की आधार, अन्न की, फल की जो जननी है ।
क्या अचरज, भूपति यदि भू को धरती माँ बतलाएं ।।7।।
गोदावरी, नर्मदा, यमुना, गंगा, और अनेकों ।
माँ जैसी ही मानवती हैं नदियों की धाराएं ।।8।।
नौ-नौ मातृदेवियाँ भी हैं, काली, गौरी माँ हैं ।
लक्ष्मी सरस्वती से धन विद्या की हैं आशाएं ।।9।।
संतोषी माँ एक, शीतला जहाँ एक माता हो ।
चेचक, मरी महामारी तक भी माता कहलाएं ।।10।।
माँ पर भारी उपमाओं के, नमन और वन्दन हैं ।
कौन वास्तविक माँ के मन की वर्णन करे व्यथाएं ।।11।।
