मासूम बचपन
मासूम बचपन
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मौसम कितना सुहाना है, समुंदर का किनारा है,
बच्चों को भी आज पिकनिक मनाना है
अंकित करता चित्र यही
सोच यह मेरी है।
बच्चे मन के सच्चे
खेल रहे आपस में
लग रहे कितने अच्छे
बड़े भाई ने छोटे को सँभाला है
दायित्व का बोध अभी से जाना है।
दुनिया से बेपरवाह,
छोटी सी नाव में अपने को ढूँढा है,
याद दिला रहा यह बचपन
काग़ज़ की नाव से खेला करते हम भी कभी,
तालियाँ बजाते
नाव जब आगे को जाती।
यह भी देख रहे,
नाव को अपनी,
जिसके आगे है विशाल समुद्र,
फिर भी यह कितने निश्चिंत
क्यूँ न हो,
नाव पर इनकी, इरादों की मज़बूत पतवार है।
नज़र न लगे, किसी की इन्हें
रश्क हो रहा मुझे,
कितना हसीन, मासूम यह बचपन है॥
