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Shraddhanjali Shukla

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Shraddhanjali Shukla

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माँ

माँ

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मैं बन जाऊँ लोरी तेरी, माँ मुझको तुम ही गाओ

दिव्य प्रेम पावन आँचल में,भरकर तुम फिर आ जाओ

कभी कह भी न पाती तुमसे,याद मुझे तुम आती हो,

छोड़ा जब से आँगन तेरा,माँ तुम बहुत रुलाती हो

मैं छिप जाऊँ फिर आँचल में,माँ दिन वापस वो लाओ।

दिव्य प्रेम,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,


मैं आज भी नादान हूँ माँ,ये दुनिया को बोलो तो

न उठता बोझ जमाने का,फिर बेटी सा तौलो तो

अपना वो प्यार भरा दिल माँ,सबके मन तक ले आओ।

दिव्य प्रेम,,,,,,,,,,,,,,,,,,,


रोती थी जिद में रोज कभी,बेटी बदल गई देखो

वो सीख गई हर एक कला,जो तुमने बोला सीखो

अब ममता का बनके बादल,फिर तुम मुझ पर आ छाओ।

दिव्य प्रेम,,,,,,,,,,,,,,,,,,



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