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अमित प्रेमशंकर

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अमित प्रेमशंकर

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माँ पिता के चरणों में

माँ पिता के चरणों में

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बहुत देखे मंदिर मस्जिद

ऐसा धाम न देखा है,

मां पिता के चरणों में

सूरज को उगते देखा है।।


ममता की ये सागर हैं,

जिसे कभी न सूखते देखा है,

ख़ुद तकलीफ में रह के जग को

खुशी में रखते देखा है।।


धर धीरज की बांध हैं ये

जिसे कभी न टूटते देखा है।

मां पिता के चरणों में

सूरज को उगते देखा है।।


इन पावन चरणों की धूली

हवा को छूते देखा है।

दर्शन को लालायित हमने

मेघ उमड़ते देखा है।।


इन्सानों की क्या कहूं

उस रब़ को झुकते देखा है।।

मां पिता के चरणों में

सूरज को उगते देखा है।।

    



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