माँ को याद करते हुए
माँ को याद करते हुए
सारी दुनिया से
अपने लिए कुछ
गिनती के पल बचा कर
सोचने बैठती है
अपने बारे में
तो पाती है
वह तो कहीं है ही नहीं
उसका अपना कुछ भी नहीं
उसके सपने/ पसंद
यहाँ तक की उसका
अस्तित्व भी
कुछ भी तो नहीं रहे
उसके पास,
भूल चुकी है सबकुछ
याद रहता है बस
घर/ पति और बच्चे,
घर उसे अनुभव करता है
पति साथ देता है
पर वो भी नहीं झाँक पाता
उसके हृदय की अतल
गहराइयों में
क्यों कि एक दरवाज़ा
वह सदा बंद रखती है,
उसकी अनुमति के बिना
प्रवेश नहीं कर सकता पति भी,
बच्चे तो सदा रहते हैं
अपनी ही बनायी दुनिया में मस्त,
बस वह स्वयं ही कभी
खोलती है उस दरवाज़े को
स्वयं से मिलती है
और बंद कर लौट आती है
यह स्वयं से मिलना ही उसका
एक ऐसा अधिकार है
जो वह किसी को नहीं देती।