लफ़्ज़ों का खेल
लफ़्ज़ों का खेल
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जो कम पड़ गए आज बयाँ करने को, कभी इन्ही लफ़्ज़ों से मुझे हराया था,
मेरे हालात मुझे यहाँ तक ले आए, तुमने तो समंदर के किनारे एक रेत का घर बनाया था।
