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Vijay Kumar parashar "साखी"

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Vijay Kumar parashar "साखी"

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लोमड़ी बनी शेरनी

लोमड़ी बनी शेरनी

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आजकल एक लोमड़ी शेरनी बन बैठी है

दिखाकर वो टूटी-टांग चुनाव जीत बैठी है


विधि विडंबना देखो,बंग महिमा देखो,

वो खुद के क्षेत्र से चुनाव हारकर बैठी है


एक लोमड़ी वेश बदल बंग ठग बैठी है

आजकल एक लोमड़ी शेरनी बन बैठी है


कितनी चाले, कितने भरे हृदय मे नाले,

आज तम किरणे, रोशनी लूटकर बैठी है


बुझ गये है, आजकल रोशन चराग सारे,

उस लोमड़ी ने किये, ऐसे घने अंधियारे,


लोगों के दिल में कालिमा बिछाएं बैठी है

वो लोमड़ी पूनम को अमावस कर बैठी है


आजकल एक लोमड़ी शेरनी बन बैठी है

घड़ियाली आंसुओं से बंग को लूट बैठी है


सच्चाई हराने असत्य की बन गई बेटी है

पर्दे-पीछे सभी विपक्षियों से मिल बैठी है


उन्हें नहीं मिली एक भी सीट यहां साखी,

जिनके बरसों से रही यहां सत्ता-रेखी है


बंग में हुई कितने आश्चर्य की बात है,

अंधेरे की मिल गई एक साथ ज़मात है,


हकीकत-हराने, घटना हो गई अनदेखी है

आजकल एक लोमड़ी शेरनी बन बैठी है


सब झूठे वहां पे कितने ही एक हो जाये,

आख़िर में जीत तो सत्य की ही रहती है


यह छद्म वेश जिस दिन वहां उतर जायेगा

उस दिन बंग में फूल जरूर खिल जायेगा


जो सत्ता छद्म, छल के बल पर रहती है

वो एक दिन अवश्य उखड़कर रहती है


सत्य का एक-एक दीया सब जलाओ,

देखते है, कितने दिन अंधेरी रात रहती है


आजकल एक लोमड़ी शेरनी बन बैठी है

शायद वो हिंद माटी की शक्ति भूल बैठी है


झूठे लोगों को यह माफ नहीं करती है,

एक दिन यह माटी बदला अवश्य लेती है,


सत्य कुछ दिन झुक भले सकता है, साखी,

रोशनी आगे तम जिंदगी कब तक रहती है


लाख निशा, अमावस अंधेरे एक हो जाये,

एक दीये के आगे उनकी एक न रहती है



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