लक्ष्य
लक्ष्य
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कुछ धुँधली सी यादें आज फिर दस्तक दे रही है,
दर्द के नगमे पुनः फिर छेड़ रही हैं,
अब बस न छेड़ो उन यादों को,
जो घावों को कुरेद रही है।
मै तू एक स्वछंद पंछी,
उड़ना जिसका स्वभाव है,
हर मुख पे मुस्कान सजे
बस यही एक भाव है
उड़ती हूँ बस इसी भाव से,
दुख ही सबका हरना है
जाओ अब तुम हे धुँधली यादों,
मंजिल मुझे पुकारती है।
निष्ठुर कहो या परदेसी
हर बात मुझे अब भाती है
प्रेम की हर क्यारी में,
अब नई पौध सजानी है
जो दुखियो की पीर हरे
लिखनी वही कहानी है।।