लखनऊ की सैर
लखनऊ की सैर
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मैं और मेरी मा जा पहुंचे नवाबों के शहर
मौसी जी के घर में हम दोनों गए ठहर
भूलभूलैया में मुझे लगा बहुत ही डर
भटका काफी देर तक हों गया मै जर्जर।
अगले दिन हम दोनों पहुंचे सुंदर घंटाघर
उधर बढ़ा दी हमने अपनी मांगों की नई दर
मौसा जी ने खूब दिखाएं फिर अपने तेवर
याद नहीं जल्दी सब गुजरे वो सारे पहर
रेल यात्रा भी थी उम्दा गए दीदी जी के घर
जीजाजी संग मनी दीवाली चिन्ता बेखबर
लौट रहे तो दादी ने दिए माँता को जेवर
इसी तरह से जीवन में खूब आती रहे लहर।