"लहराती-बलखाती" नदी की आत्मकथा
"लहराती-बलखाती" नदी की आत्मकथा
मैं हिमालय की गोदी से,
निकली दुर्गम स्थानों पर,
लहराती, बल खाती,
ऊंची-नीची राहों से,
अपना रास्ता बनाती,
पहाड़ों पर से इठलाती,
तलहटी, मैदानों में विशाल,
रुप लेती, हर शहर, गाँव की,
जीवनदायिनी कहलाती।
मेरे अनेकों हैं नाम, जैसे
गंगा, गोदावरी, यमुना,
ब्रहमपुत्र, रावी, व्यास,
झेलम, सतलज,
कितने नामों से पुकारी जाती हूँ।
खेतों, खलिहानों में मुझसे है,
रौनकें पेड़ों पौधों को अपने पानी,
से सींचती, हूँ मैं ईश्वर की और से,
प्रकृति की अनमोल देन हूँ
मनुष्य, जानवर, परिंदों,
जीव-जन्तुओं पहाड़ों,
मैदानों की शान हूँ,
यहीं है मेरी आत्मकथा
