लड़की, तकदीर बदलती।
लड़की, तकदीर बदलती।
हमारा समाज,
है पुरुष केंद्रित,
कुछ भी करो,
पुरूष से पूछो,
उसके बिना,
जीवन नहीं चलता।
औरत हमेशा रहती,
उपेक्षा का शिकार,
सबसे ज्यादा देती
योगदान,
फिर भी समाज,
पुरूष प्रधान।
इसकी शुरुआत होती,
लड़की की पैदाइश के साथ,
लड़के को समझा जाता,
विरासत का हक़दार,
लड़की तो होती पराई,
एक दिन चली जाएगी,
पति के साथ।
लड़का चाहे न पूछे,
किंतु माँ बाप,
उसके आगे झुकते,
ये कैसा समाज,
क्यों ये भेदभाव,
जब कुदरत ने दोनों को
इंसान बनाया,
फिर लड़की लड़के में,
फर्क क्यों कर डाला।
क्यों नहीं,
दोनों को बराबर
समझा जाता,
एक जैसा चाहा जाता।
इसी उपेक्षा के कारण,
लड़कीयों का है निदारद,
आओ सब मिल के,
लड़का लड़की को
माने एक सा,
केवल योग्यता पे हो,
हर फैसला,
अगर लड़की है सक्षम,
तो उस पे न हो रोकथाम,
और अगर लड़के में हो दम,
तो फिर वो आएं आगे।
परंतु इससे पहले,
हमारी मानसिकता को
होगा बदलना,
लड़कीयों से जो होती
आई नाइंसाफी,
उसको देनी होगी,
तिलांजली।
