लचक अभी बाकी है
लचक अभी बाकी है
कब तक तलाशोगे ऐब,
लब्ज़ दर लब्ज़ टटोल कर।
मैं तो दिल से बोलता हूँ,
और दिल का ही बोलता हूं।।
ठहरा दो गुनहगार मुझे
तोड़ मरोड़ दो अल्फाजों को।
फ़िर भी मैं बिलूँगा वही,
दिल जो फुसफुसायेगा।।
रंग उड़ा नहीं है मेरा,
सादा लिबास हूँ मैं।
छींटाकशी का मज़ा
ज़रूर आयेगा तुम्हें।।
कैसे भी आते हो आओ,
स्वागत है मेरे दर पे।
उम्मीद जो रखता मैं नहीं,
कौए से कोयल का आलाप।।
सुखा ना समझो डालियों को,
पतझड़ का मौसम है ये।
ना तोड़ो ये बेरहम,
लचक अब भी बाकी है।।
नुकसान में भी हो नफ़ा,
तुम समझ ना पाओगे कभी।
पूछो वो वापसी लहर से,
जो लौटा हो समंदर छूँ कर।
फ़ज़ल है ज़नाब आपकी,
ग़ज़ल ही समझ रहे हैं।
दवा तीता है तो क्या,
असर तो करेगा ज़रूर।।
फ़ज़ल-कृपा, मेहेरबानी