लालबत्ती
लालबत्ती
निर्मोही शहर की रोक देती है
रफ़्तार लालबत्ती,
भागते -दौड़ते लोगों की
आपाधापी थम जाती है।
सोचने को, देखने को, महसूसने को
मजबूर करती है हमको,
तब बहुत- सी चीजें लालबत्ती के
पास नज़र आती हैं।
जो अमूमन हम नहीं देखते या
नज़रअंदाज़ कर जाते हैं।
जीवन का आभास, भीख माँगते
लोगों में,
बाज़ार है दो का चार करके
बेचने वालों में।
बेकारी दिखती है, कार के शीशे पर
उँगली से ठोक कर
भूख के लिए माँगते लोगों में।
बूढ़े चचा की मज़बूरी है शायद,
अगरबत्ती या रुमाल बेचने की,
पर चेहरे पर ग़जब की ख़ुद्दारी
दिखती है।
गोद में बच्चा लिए माँगती स्त्री की
विवशता है या है चालाकी भी।
पलक झपकते दिखता है
विंडस्क्रीन पर
गीला पोंछा मारते
किशोर की आत्मनिर्भरता भी।
कभी दिख जाती है किन्नरों की टोली,
कुछ रेज़गारी के बदले अशेष दुआएँ देते।
और कुछ मर्द औरतनुमा वेश में ।
कुछ की जन्मजात मजबूरी और
कुछ के लिए आसान कमाई का तरीक़ा भी।
पूरी ज़िंदगी के दर्शन हो जाते हैं हमको
जब चौराहे पर जल उठती है, लालबत्ती।
