क्यों छीन लिया हमसे ये अधिकार
क्यों छीन लिया हमसे ये अधिकार
क्यों नहीं समझा तूने मुझको
अपने जिगर का एक टुकड़ा.....?
मैं भी हूँ तेरे ही कोख से जन्मा एक सितारा
फिर भी क्यों रहा हर बार तेरी ममता से वंचित....?
माना था मेरी आवाज़ में थोड़ी कटुता
हृदय से भी था थोड़ा कठोर
पर था तो तेरा अपना ही ना
फिर क्यों किया तूने माँ ऐसा....?
क्या बाबा की संपत्ति पर इतना भी हक नहीं था मेरा...?
जो तूने कर दिया सब कुछ अपने लाडले के नाम.....
कहती थी तू मैं भी तेरे दिल के करीब हूँ
फिर क्यों निकल फेंका अपने दिल से मुझको......?
माना मुझको नहीं आती करनी मीठी बातें
पर हर क्षण तेरा नाम लिया
तेरी फिक्र में आँखों से आँसू बहाल किया......
फिर क्यों किया तूने माँ फर्क अपने ही बच्चों में....?
जबकि सबको सींचा तूने अपने ही खून से....
तुझ पर था मुझको अटूट विश्वास
जिसे तूने एक क्षण में चटका दिया....
धन दौलत नहीं था मायने मेरे जीवन में
पर ये तो बाबा का आशीर्वाद था
हक था इस पे हमारा
फिर क्यों छीन लिया हमसे ये अधिकार माँ......!
