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क्या सोच कर

क्या सोच कर

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ना जाने क्या सोच कर उसने

कलम मेरे हाथो में पकड़ा दी,

अपने दिल के राज़ हम लिख दे

यह ही चाहत रही होगी उसकी,

हमने भी कलम जो थाम ली

तो फिर हाले दिल अपना

बयां करते चले गए

उसको भूलने की कोशिश में 

उसको और याद करते चले गए

जितना दूर वो हमसे होने की

कोशिश करता रहा

हम उतने ही करीब होते चले गए

जुदा जुदा रहकर भी हम

पास पास ही रहे साये की तरह

हम यह सोच सोच कर परेशान

होते रहे की क्यों यह सब हुआ

और वो हमारे ख्वाबो को

दूर रहकर पूरा करता रहा

जाने क्यों वो बेवफा हो गया

हम सोचते रह गए

बस सोचते रह गए और

वो वफ़ा की मूरत बन गया


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