क्या और किसे?
क्या और किसे?


अब मैं क्या बोलूं
अब मैं किसे बोलूं
अब मैं क्या छोडूँ
अब मैं किसे छोडूँ
ये किताबें भी पूछे
आखिर कैसे तुम हारे
इतने यार जो थे
कहां गए वो सारे
लोग तो आज भी
साथ में दिखते हैं
क्या ये जज़्बात
आज भी बिकते हैं
एक उम्र है निकाली
एक दौर है गुजारा
कितनी बाजियाँ जिताई
फिर थक कर मैं हारा
पौधा ये जो सींचा था
पेड़ बड़ा ये हो गया
जो जो भी सोचा था
पूरा सब वो हो गया
शिकायतें हैं थोड़ी कुछ
थोड़े से कुछ शिकवे हैं
अभी बाकी हैं राहें कुछ
थोड़े से बाकी कुछ रस्ते हैं
पर अब रुकने की चाह है
सोचता हूं कि सब छोड़ दूँ
लेकिन उठती फिर ये आह है
कि क्या छोडूँ, किसे छोडूँ
इतने ख्याल उठने लगे हैं
सोचता हूं कि सब बोल दूँ
लेकिन उठते फिर सवाल हैं
कि क्या बोलूं , किसे बोलूं!!!