कविता कारवां
कविता कारवां
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दिल की गलियों से निकला
जब यादों का कारवां
ठहरा कर अश्क
पलकों पर
किया इसका सामना
दिल में उठे जज्बात
जब जुबां न कह सकी
नजरों की मुंडेर से
किया इसका सामना
अधूरी हसरतों का
जब देखा जनाजा
सीने को थाम कर
किया इसका सामना
खुशनुमा कुछ गुमनुमा पल
जब समेटे बढ़ रहा था कारवां
अनजान गली कूचों ने
किया इसका सामना।
