कुछ नहीं कह पा रहा हूँ मैं !
कुछ नहीं कह पा रहा हूँ मैं !
कुछ नहीं कह पा रहा हूँ मैं ,
कुछ नहीं लिख पा रहा हूँ मैं।
ज़िंदगी कुछ इस कदर रुठी है मुझसे,
मौत से घबरा रहा हूँ मैं।।
खो गई है अब तो अपनी हर खुशी,
चाँद से रुठी हो जैसे चांदनी।
नींद पलकों पर हो जैसे आ बसी ,
ख़ुशियाँ अब तो बन चुकी हैं ख़्वाब सी।।
कदम अपना डगमगाता पा रहा हूँ मैं,
बेबसी के गीत गाता जा रहा हूँ मैं।।
कुछ नहीं ...
मन मुसाफिर पूछता सबसे पता ,
इतनी मुश्किल क्यों सज़ा मैं पा रहा।
जाने क्या हो गई है मुझसे खता,
जिसकी मिलती जा रही मुझ को सज़ा।।
इस जहां से बेमजा ही जा रहा हूँ मैं ,
उस जहां में तुझ से मिलने आ रहा हूँ मैं।।
कुछ नहीं .....
