Sachin Kapoor
Others
कुछ आँसू दिखते नहीं
बहते रहते हैं
अंदर
दरिया बनकर
कुछ ज़ख्म नजर नहीं आते
रिसते रहते हैं
भीतर कहीं
नासूर बनकर
कुछ पीड़ा आँखें छिपा जाती हैं
पर सालती रहती हैं
मन को
उम्र भर
धूप सी तुम
तूफ़ान
कभी तो उतर जम...
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