कुछ अबूझ से
कुछ अबूझ से
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कुछ चीजें होती हैं समझ से परे,
बनी रहती हैं एक गहरा सा राज।
व्यक्तित्व कुछ अव्यक्त से होते हैं,
मानवता जिन पर करती है नाज़।
जग में कुछ उपयोगी दिखते नहीं ,
पर आते रहते हैं हर हाल में काम।
जीवन की सार्थकता उपयोगी होना,
नहीं है चाहत -हो कुछ मेरा भी नाम।
सब स्पष्ट होता है ख़ुदा और खुद से,
अच्छा-बुरा जैसा भी हो निज कर्म।
प्रभु दो वह शक्ति और वही प्रेरणा,
रहूं सुपथ पर - कभी न छूटे धर्म।
