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Kanchan Pandey

Others

3.3  

Kanchan Pandey

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कशमकश

कशमकश

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अंतर्मन की करुण व्यथा

सखी किससे मैं बताऊँगी

इस दुःख की कलुषित माला

कब तक वहन कर पाऊँगी

दुःख के तप में जली मन

अब मन को कैसे मनाऊँगी

अंतर्मन की करुण व्यथा

सखी किससे मै बताऊँगी

कौन मनाए

क्या मानेगा

ताप उसने बहुत सहा है

कैसे उसको समझाऊँगी

दुःख की भमर में खाए हिचकोले

किन बातों से बहलाऊँगी

अंतर्मन की करुण व्यथा

सखी किससे मैं बताऊँगी |




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