करवाचौथ
करवाचौथ
ऐ चाँद बता, तू छिपा कहाँ, मैं ढूँढ रही हूँ आज तुझे
निर्जल व्रत धारण कर, छलनी से झाँक रही हूँ तुझे
मत देर लगाना आने में, दीदार जरूरी तेरा है
विस्तृत आभामण्डल तेरी, आकर दीदार करा दे मुझे
ऐ चाँद बता तू छिपा कहाँ, मैं ढूंढ रही हूँ आज तुझे
शृंगार किया जिसका मैनें, बिंदिया माथे पे सजाई है
सिंदूर लगाया जिसका है, पायल जिसकी छनकाई है
वह साथ रहे मेरे जन्मों तक,जिसने बिछिया पहनाई है
शृंगार किया जिसका मैने, बिंदिया माथे पे सजाई है
सदा सुहागन रहूँ मैं चंदा, दे ऐसा आशीष मुझे
निर्जल व्रत धारण कर, छलनी में झाँक रही हूँ तुझे
व्रत पूजा अनुष्ठान करूँ, करवा चौथ मनाऊँ मैं
करके हँसी, ठिठोली उससे,उसको सदा रिझाऊँ मैं
मेरी हँसी उससे ही जिंदा, साँसे पास उसी के हैं
दे ऐसा आशीष मुझे, हर जन्म में उसको पाऊँ मैं
कृपा बरस जाए मुझ पर, इसलिये ढूँढती आज तुझे
ऐ चाँद बता, तू छिपा कहाँ, मैं ढूँढ रही हूँ आज तुझे।