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Kusum Joshi

Others

2.5  

Kusum Joshi

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कर्ण

कर्ण

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राजमहल का वारिस बन,

राजमहल में जन्मा था जो,

पालना उसका लकड़ी की काठी,

बचपन गंगा माँ बनी,


तन से मन से और कर्म से,

क्षत्रिय सा सम्मानित था जो,

राधा माँ का लाल बना और,

सूत पुत्र पहचान बनी,


वो माँ जिसकी ममता के सम्मुख,

विश्व भी शीष नवाता था,

अपना सम्मान बचाने को,

उसने पुत्र से तोड़ा नाता था,


जो बचपन से था शौर्यवान,

सूर्य पुत्र रूप में जन्मा था,

ही माँ तेरे अज्ञान के कारण,

हर दिन घुट घुट मरता था,


नियति तेरी है विडंबना,

दया तुझे नहीं आयी थी,

वीरों की एक सभा में जिस दिन,

एक वीर ने ज़िल्लत पायी थी,


वो समय भी कितना क्रूर हुआ,

जब गुरु ही शापित कर बैठे,

जो न्याय धर्म के द्योतक थे,

वो अन्याय क्यों कर बैठे,


संयम की नारी वो देवी,

क्या अभिमान में कर बैठी,

बस देखा जाति को उसने और,

पक्षपात वो कर बैठी,


क्यों सभा में भगवान भी,

अन्याय देख खामोश हुए,

जो वीरों में सम्मानित था,

क्यों हरपल अपमान का घूंट सहे,


जिसकी विद्या को बाणों से,

अर्जुन कभी ना साध सका,

उसकी मृत्यु बुलाने को,

भगवान ने भी कुचक्र रचा,


धर्म युद्ध के नाम पर,

क्यों अधर्म हुआ हाय धरती पर,

कैसे चुकाऊं उस रक्त का कर,

ये धरती सोच रही पल पल,


जिसकी दान वीरता में भी,

इंद्र छलावा कर बैठे,

अर्जुन की जान बचाने को,

वो वीरता से धोखा कर बैठे,


क्यों प्रकृति ने हर पल,

उस वीर से भेदभाव किया,

एक योद्धा धरती पर जन्मा,

जिस पर नियति ने प्रहार,

सैकड़ों बार किया।


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