कर्मों की गति न्यारी
कर्मों की गति न्यारी
यादों के पन्नो से भरी है जिंदगी
सुख और दुःख कि पहेली है जिंदगी,
कभी अकेले बैठ कर सोच कर तो देखो
कर्मों के आधीन कर्मों की है मोहताज ज़िंदगी.!
उम्र के अंतिम मोड़ पर
वक्त के किनारे पर उतर आती है ज़िंदगी में किए हुए कर्मों के रंगों की टशर.!
झाँकी उतर आती है कुछ चमकीले तो कुछ बेरंगी इंद्रधनुष सी यादों की
दिलो दिमाग में असंख्य उन्माद जन्म लेते, झकझोरते हैं पूरे सफ़र का हिसाब पूछते,
इंसान की फ़ितरत से वाकिफ़ मन भागता है एक डर लिए.!
किए हुए कर्मों की गति आसपास मंडराते खयालों को अनदेखा करते गुज़रती है,
एक एक करते उतर आती है आँखों के सामने,
चलचित्र सी अनगिनत छवि अच्छी यादें मुस्कान सजाती है,
अनमनी दु:खद घटनाएँ आँखें भिगोती कचोटती है वजूद को.!
जन्म से लेकर आख़री पड़ाव का सफ़र
काट लेता है इंसान मद में डूबकर.!
आसान नहीं अंतिम मोड़ ज़िंदगी का काटना। कर्मों की गति न्यारी,
अंत में सुकून के पल में भारी करते है जब, एक-एक करके दोहराता है मन खुद के किए कर्म।
मन बेखबर है उसे मालूम नहीं
कर्म एक ऐसा रेस्टॉरेंट है, जहाँ ऑर्डर देने की जरुरत नहीं है,
हमें वही मिलेगा जो हमने पकाया है।
