कोरोना की मात है
कोरोना की मात है
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महामारी रोज़ बढ़ रही है
आमदनी सबकी रुक गई है
पर ख़र्चे कम नहीं हो रहे है
ज़िंदगी ठहरी सी लग रही है।
चूल्हा तो रोज़ जलाना ही है
सब मजदूरों का काम बंद है
भूखे पेट नींद भी कहाँ आती है
गिन-गिन कर दिन गुज़र रहे हैं।
सबकी मुश्किलें और बढ़ रही हैं
जमा पूँजी अब ख़त्म हो रही है
फिर भी कोई हिम्मत नहीं हारे हैं
अब कोरोना की जरूर मात है।