कोरी आँखें
कोरी आँखें
ये कोरी सूखी तथ्यहीन आँखें तुम्हारी नहीं हो सकती,,,
गुस्सैले तीर कमान सी कातिल, आशिकों की पहली पसंद ओर कविताओं की जान थी ये आँखें,,,
सपनो की करवटों के निशान क्यूँ धुले आसमान की सतह से साफ़ नज़र आते हैं ,,,
क्यूँ हंसी की बौछार से भरी आँखें थक कर खाली बदली में ढ़ल गई,,,
ये आँखें पहचान थी झगमगाते जीवंत जुगनुओं की, आज दर्द के बोझ तले क्यूँ दब गई,,,
मयखाने की महक ओर पाक सुराही सी दिलकश, नशे की धड़क सी ये आँखों का मंज़र वीरान मरघट के कूप में बदल कर मातम के नग्में दोहराती है,,,
बंद कर दो पलकों के किवाड़ अपनी ख़्वाबगाह की दहलीज़ के
मुझे आदत नहीं एसी बे-नूर अश्कों से नहाई, सूनी शाम सी बंरंग सी तुम्हारी आँखें
वक्त से उठी आग की लपटों ने घर कर लिया हो जिन आँखों की ज़मीन पर,
वहाँ खुशबूदार हंसी के टेंशू की कोंपले नहीं उगती
समझो ना साहब,,,
ये आँखे अब विरानियों का बसेरा है सहरा में बारिश नहीं हुआ करती।।
