कंक्रीट के जंगल
कंक्रीट के जंगल
घने घने से सघन बसे हैं,
विस्तृत हैं वन से सजे हैं,
पर ना इनमें हरियाली है,
ना फूलों की फुलवारी है,
वात-पात-लता नहीं है,
खग पक्षी का पता नहीं है,
न इनमें है सुलभ पंकदल,
ये तो हैं कंक्रीट के जंगल।
ना बहती इनमें पुरवाई,
ना है बरगद की परछाई,
सर-सर की आवाज़ें ना हैं,
ना तीतर की अंगड़ाई,
कहीं हॉर्न का शोर यहां है,
कहीं धुएं का जोर यहां है,
और कहीं कचरे का दलदल,
ये तो हैं कंक्रीट के जंगल।
इनमें भी जब घुस जाओगे,
राह बड़ी मुश्किल पाओगे,
दूर दूर तक खड़े खड़े से,
भवन दिखेंगे बड़े बड़े से,
पगडण्डी सी गलियां इनमें ,
गलियों में भी गलियां इनमें,
खो जाओगे इनके भीतर,
ये तो हैं कंक्रीट के जंगल।
रंग -रंग के बने ये जंगल,
ईंटों से हैं सजे ये जंगल,
शीतलता ना मिलेगी इनमें ,
रवि किरणों से तपे ये जंगल,
इनको तजकर कहाँ जाओगे,
भूले भटके यहीं आओगे,
विस्तृत भू पर फैले जंगल,
ये तो हैं कंक्रीट के जंगल।।
