कनिष्का कृतिका
कनिष्का कृतिका
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लिखती हूँ आज तुम्हारे लिए
आए जब तुम हमारे लिए
सुनाती हूँ तुमको तुम्हारी कहानी
जो है कुछ अनसुनी अनजानी
शुरुआती पल कुछ गंभीर थे
पर डरो न आगे सब हसीन थे
हालांकि मां पर थी शिकन
पर दादी मां ने संभाला मिशन
बाकी सदस्य तो थे बड़े उत्साहित
आखिर किया मां को भी प्रोत्साहित
बात न थी सिर्फ घर की
यह बात थी अड़ोस पड़ोस की भी
हुई पहचान जुड़वा के घर से
आखिर सिर ऊंचा किया पिता का गर्व से
आज भी वो पल याद आते
जब है कोई तुम्हारी पहचान जताते
कोई कहता मोटी कन्नू
तो कोई कहता छोटी किरतू
यह कहानी है तुम्हारी
जो बयां की गई मेरी जुबानी।
